अध्याय 1 श्लोक 20-30 | अर्जुन विशाद योग | श्रीमद्भगवद गीता हिंदी

अध्याय 1 श्लोक 20-30 | अर्जुन विशाद योग | श्रीमद्भगवद गीता हिंदी

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अध्याय 1 का श्लोक 20.21
अथ, व्यवस्थितान्, दृष्टवा, धार्तराष्ट्रान्, कपिध्वजः,
प्रवृत्ते, शस्त्रासम्पाते, धनुः, उद्यम्य, पाण्डवः।।20।।
हृषीकेशम्, तदा, वाक्यम्, इदम्, आह, महीपते,
सेनयोः, उभयोः, मध्ये, रथम्, स्थापय, मे, अच्युत।।21।।
अनुवाद: हे राजन्! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र सम्बन्धियों को देखकर उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा हे अच्युत! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये। (20.21)
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अध्याय 1 का श्लोक 22 (अर्जुन उवाच)
यावत्, एतान्, निरीक्षे, अहम्, योद्धुकामान्, अवस्थितान्,
कैः, मया, सह, योद्धव्यम्, अस्मिन्, रणसमुद्यमे।।22।।
अनुवाद: जब तक कि मैं युद्ध-क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन विपक्षी योद्धओं को भली प्रकार देख लूँ कि इस युद्धरूप व्यापार में मुझे किन-किन के साथ युद्ध करना योग्य है। (22)
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अध्याय 1 का श्लोक 23
योत्स्यमानान्, अवेक्षे, अहम्, ये, एते, अत्रा, समागताः,
धार्तराष्ट्रस्य, दुर्बुद्धेः, युद्धे, प्रियचिकीर्षवः।।23।।
अुवाद: दुर्बुद्धि धृतराष्ट्र के दुर्योंधन का युद्ध में हित चाहने वाले जो-जो ये राजा लोग इस सेना में आये हैं इन युद्ध करने वालों को मैं देखूँगा। (23)
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अध्याय 1 का श्लोक 24.25
(संजय उवाच)
एवम्, उक्तः, हृषीकेशः, गुडाकेशेन, भारत,
सेनयोः, उभयोः, मध्ये, स्थापयित्वा, रथोत्तमम्।।24।।
भीष्मद्रोणप्रमुखतः, सर्वेषाम्, च, महीक्षिताम्,
उवाच, पार्थ, पश्य, एतान्, समवेतान्, कुरून्, इति।।25।।
अनुवाद: हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज श्रीकृष्णचन्द्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा करके इस प्रकार कहा कि हे पार्थ! युद्ध के लिये जुटे हुए इन कौरवों को देख। (24.25)
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अध्याय 1 का श्लोक 26.27
तत्रा, अपश्यत्, स्थितान्, पार्थः, पित¤न्, अथ, पितामहान्,
आचार्यान्, मातुलान्, भ्रात¤न्, पुत्रान्, पौत्रान्, सखीन्,तथा (26)
श्वशुरान्, सुहृदः, च, एव, सेनयोः, उभयोः, अपि,
तान्, समीक्ष्य, सः, कौन्तेयः, सर्वान्, बन्धून्, अवस्थितान्,।। (27)
अनुवाद: इसके बाद पृथापुत्र अर्जुन ने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को दादों-परदादों को गुरुओं को मामाओं को भाइयों को पुत्रों को पौत्रों को तथा मित्रों कों ससुरों को और सुहृदों को भी देखा। उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर उस कुन्तीपुत्र अर्जुन ने। (26.27)
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अध्याय 1 का श्लोक 28
(अर्जुन उवाच)
कृपया, परया, आविष्टः, विषीदन्, इदम्, अब्रवीत्,
दृष्टवा, इमम्, स्वजनम्, कृष्ण, युयुत्सुम्, समुपस्थितम्।।28।।
अनुवाद: अत्यन्त करुणा से युक्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले। हे कृष्ण! युद्ध-क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजन-समुदाय को देखकर (28)
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अध्याय 1 का श्लोक 29
सीदन्ति, मम, गात्राणि, मुखम्, च, परिशुष्यति,
वेपथुः, च, शरीरे, मे, रोमहर्षः, च, जायते।।29।।
अनुवाद: मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं। और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्पन एवं रोमांच हो रहा है। (29)
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अध्याय 1 का श्लोक 30
गाण्डीवम्, स्त्रांसते, हस्तात्, त्वक्, च, एव, परिदह्यते,
न, च, शक्नोमि, अवस्थातुम्, भ्रमति, इव, च, मे, मनः।।30।।
अनुवाद: हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है इसलिए मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ। (30)

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