अध्याय 1 श्लोक 11-19 | अर्जुन विशाद योग | श्रीमद्भगवद गीता हिंदी




अध्याय 1 श्लोक 11-19 | अर्जुन विशाद योग | श्रीमद्भगवद गीता हिंदी
अध्याय 1 का श्लोक 11
अयनेषु, च, सर्वेषु, यथाभागम्, अवस्थिताः,
भीष्मम्, एव, अभिरक्षन्तु, भवन्तः, सर्वे, एव, हि।।11।।
अनुवाद: इसलिए सब मोर्चोंपर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आपलोग सभी निःसन्देह भीष्मपितामह की ही सब ओर से रक्षा करें। (11)
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अध्याय 1 का श्लोक 12
तस्य, सजनयन्, हर्षम्, कुरुवृद्धः, पितामहः,
सिंहनादम्, विनद्य, उच्चैः, शङ्खम्, दध्मौ, प्रतापवान्।।12।।
अनुवाद: कौरवों में वृद्ध बड़े प्रतापी पितामह भीष्मने उस दुर्योंधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया। (12)
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अध्याय 1 का श्लोक 13
ततः, शङ्खाः, च, भेर्यः, च, पणवानकगोमुखाः,
सहसा, एव, अभ्यहन्यन्त, सः, शब्दः, तुमुलः, अभवत्।।13।।
अनुवाद: इसके पश्चात् शंख और नगारे तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ। (13)
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अध्याय 1 का श्लोक 14
ततः, श्वेतैः, हयैः, युक्ते, महति, स्यन्दने, स्थितौ,
माधवः, पाण्डवः, च, एव, दिव्यौ, शङ्खौ, प्रदध्मतुः।।14।।
अनुवाद: इसके अनन्तर सफेद घोड़ों से युक्त उत्तम रथ में बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुन ने भी अलौकिक शंख बजाये।(14)
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अध्याय 1 का श्लोक 15
पाचजन्यम्, हृषीकेशः, देवदत्तम्, धनजयः,
पौण्ड्रम्, दध्मौ, महाशङ्खम्, भीमकर्मा, वृकोदरः।।15।।
अनुवाद: श्रीकृष्ण महाराज ने पाजन्य नामक अर्जुन ने देवदत्त नामक और भयानक कर्म वाले भीम सेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया। (15)
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अध्याय 1 का श्लोक 16
अनन्तविजयम्, राजा, कुन्तीपुत्राः, युधिष्ठिरः,
नकुलः, सहदेवः, च, सुघोषमणिपुष्पकौ।।16।।
अनुवाद: कुन्ती पुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये (16)
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अध्याय 1 का श्लोक 17.18
काश्यः, च, परमेष्वासः, शिखण्डी, च, महारथः,
धृष्टद्युम्नः, विराटः, च, सात्यकिः, च, अपराजितः।।17।।
द्रुपद:, द्रौपदेयाः, च, सर्वशः, पृथिवीपते,
सौभद्रः, च, महाबाहुः, शङ्खान्, दध्मुः, पृथक्, पृथक्।।18।।
अनुवाद: श्रेष्ठ धनुष वाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रा पुत्र अभिमन्यु इन सभी ने हे राजन्! सब ओर से अलग-अलग शंख बजाये। (18)
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अध्याय 1 का श्लोक 19
सः, घोषः, धार्तराष्ट्राणाम्, हृदयानि, व्यदारयत्,
नभः, च, पृथिवीम्, च, एव, तुमुलः, व्यनुनादयन्।।19।।
अनुवाद: और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुँजाते हुए धृतराष्ट्र के यानि आप के पक्षवालों के हृदय विदीर्ण कर दिये। (19)
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